उत्तराखंडटिहरी गढ़वाल

आज भगवान बदरीनाथ के लिए सुहागिन महिलाएं द्वारा सिलबट्टे से तिलों का तेल पिरोया जाएगा, जानिए ये अनूठी परंपरा

विश्व विख्यात श्री बद्रीनाथ धाम जी के महाभिषेक के लिए तिल का तेल उपयोग करने की प्राचीन काल से परम्परा है।
आज नरेंद्रनगर राजमहल में भगवान बद्रीनाथ जी के महाभिषेक में प्रयुक्त होने वाला तिल का तेल सुहागिन महिलाओं द्वारा विशेष पोशाक पहनकर पिरोया जाएगा।

सुहागिन महिलाओं द्वारा मूसल और सिलबट्टे से तिलों का तेल निकाला जाएगा

गाडू घड़ा तेल पिरोने व कलशयात्रा को लेकर नरेन्द्रनगर के राज महल को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है

आज 12 अप्रैल को नरेंद्रनगर के राज महल में महारानी व टिहरी की साँसद राज्य लक्ष्मी शाह की अगुवाई में नगर की सुहागिन महिलाओं के द्वारा पीला वस्त्र धारण कर भगवान बद्री विशाल के अभिषेक के लिए मूसल व सिलबट्टे से तिलों का तेल पिरोया जाएगा,

सदियों से चली आ रही इस परंपरा का आज भी अटूट आस्था के साथ बढ़-चढ़कर निर्वहन किया जा रहा है,
गांडू घड़ा तेल कलश यात्रा व भगवान बद्री विशाल धाम के कपाट खोलने की तिथि वसंत पंचमी के पावन अवसर पर महाराजा की जन्म कुंडली व ग्रह नक्षत्रों की गणना करके राजपुरोहित द्वारा निकाली गयी थी,
राज महल को चारों ओर से दुल्हन की तरह फूल मालाओं से सजाया जा रहा है,
आपको यह भी बताते चलें कि भगवान बद्री विशाल धाम के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ आगामी 27 अप्रैल को 7:10 पर प्रातः खोले जाएंगे,

कैसे पुरी हुई परंपरा?
सदियों पुरानी परंपराओं के अनुसार भगवान ब्रदीविशाल के लेप और अखंड ज्योति जलाने के लिए उपयोग तिल का तेल सदियों से उपयोग में आता है. नरेन्द्रनगर स्थित टिहरी राजमहल में महारानी के अगुवाई में पवित्रता से राजपरिवार और नगर की सुहागिन महिलाओं द्वारा पीला वस्त्र धारण कर मूसल और सिलबट्टे से निकाला जाता है. शुक्रवार को तिल का तेल महाराजा की पुत्री श्रीजा शाह अरोड़ा की अगुवाई में नगर की 60 से अधिक सुहागिन महिलाओं द्वारा पीले वस्त्र धारण कर निकाला गया. इस दौरान मूसल और सिलबट्टे से परंपरागत तौर तरीकों को अपनाते हुए हाथों से निकाला गया है.

प्राचीन काल से ही तिलों का तेल निकालने की तिथि से ही बद्रीनाथ के कपाट खुलने की प्रकिया की शुरूआत माना जाता रहा है. तेल पिरोने के बाद तिलों का तेल एक विशेष बर्तन में गरम करने की साथ-साथ उसमें विशेष जड़ी बूटी भी डाली जाती है. ताकि तेल में लेश मात्र भी पानी ना रहे. पुनः पूजा-अर्चना और भोग लगाने के बाद तिलों के तेल को चांदी के कलश गाडू घड़ा में परिपूरित किया गया. यह गाडू घड़ा बद्रीनाथ धाम की धार्मिक पंचायत डिमरी समुदाय को सौंपा गया, जो गाडू घड़ा भव्य कलश शोभा यात्रा लेकर बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना हो गए हैं. आज यह गाडू घड़ा कलश शोभायात्रा ऋषिकेश चेला चेतराम आश्रम में विश्राम कर, कल प्रात: बद्रीनाथ धाम के लिए पुन: रवाना होगी.

उत्तराखंड वार्ता

उत्तराखंड वार्ता समूह संपादक

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